आज उसी मोड़ पे उनसे मुलाक़ात हो गई...
जिस मोड़ पे बरसों तेरी मैंने रह ताकि थी....
ये वक्त ही ही तो है ....जो.....
आज मैं तुझे नही दे सकता, और जो कल तू मुझे न दे सकी थी....
तेरा साथ पाना तो मेरी दिली ख्वाहिश थी....
पर ये बात तुझे उस वक्त नागवार गुजरी थी...
और आज जब मैं चाह के भी तुम्हारा साथ नही दे सकता...
तुम सामने खड़ी हो और कह रही हो की वो मेरी मज़बूरी थी....
क्यों हम वक्त रहते कोई बात समझ नहीं पाते है...
और मौका हाथ से जाने के बाद अक्सर उसे वापस चाहते हैं...
2 comments:
तेरा साथ पाना तो मेरी दिली ख्वाहिश थी....
पर ये बात तुझे उस वक्त नागवार गुजरी थी...
और आज जब मैं चाह के भी तुम्हारा साथ नही दे सकता...
तुम सामने खड़ी हो और कह रही हो की वो मेरी मज़बूरी थी....
bhut badhiya. jari rhe.
आज मैं तुझे नही दे सकता, और जो कल तू मुझे न दे सकी थी....
" wah, kitnee khubsurtee se likhe hai, so touching"
Regards
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