Thursday, August 27, 2009

हाल-ऐ-आइना....

हैरान है वो मुझे देखकर....
गोया की मैं मिला ही न हूँ कभी ....
औरों को क्या तोहमत दूँ मैं....
जब ये हाल-ऐ-आइना है.....

जाने कहाँ खो गई...
जो निशानियाँ थी मेरी....
वोह मुस्कुराता चेहरा.....
जैसे अब कहीं ना है....

3 comments:

ओम आर्य said...

बहुत ही सुन्दरता से उकेरी है मन के भाव.........बधाई

Anonymous said...

khayalat bahut achchhe hain. kvita ke sare aayam hain. thodee see shilp, wyakran, bhasha par pakad rakhen.

हरकीरत ' हीर' said...

हैरान है वो मुझे देखकर....
गोया की मैं मिला ही न हूँ कभी ....
औरों को क्या तोहमत दूँ मैं....
जब ये हाल-ऐ-आइना है.....

जाने कहाँ खो गई...
जो निशानियाँ थी मेरी....
वोह मुस्कुराता चेहरा.....
जैसे अब कहीं ना है....

waah bahoot khoob ....!!

achha likh rahe hain aap ....!!