Wednesday, September 2, 2009

तेरी आदत.....

तेरा ख़त इस बात की गवाही है....

की तुझे मेरी याद तो है.....

लगा जैसे की तुझे एहसास तो है...

की तेरे बिना आज भी कोई बरबाद है....


मेरी निगाहों में आज भी तेरी ही सूरत है...

मेरे दिल में आज भी तेरे लिए वो ही सीरत है....

भले ही तू दूर हो गई हो मुझसे...

लेकिन मुझे आज भी तेरी आदत है....


जी रहा हूँ उसी लम्हे में....

जिसमे तुमने मुझे छोड़ा था....

लोग कहते है वो गुजर गया.....

हमे यकीं है ये तुम्हारी शरारत है....

2 comments:

सर्वत एम० said...

'तेरा खत आज भी इस बात की गवाही है'.... बन्धु इस एक 'का' ने गवाही का लिंग परिवर्तित कर दिया. आपने जल्दी जल्दी में इस पर ध्यान नहीं दिया.
बहरहाल, कविता सशक्त है, मजबूत है, बिलकुल आप ही की तरह. बधाई.

Rajeysha said...

वरना ग़मों की शाम ही ढलती नही यहाँ.

क्‍या लिख दिया है आपने