Friday, February 12, 2010

जुस्तजू.....

एक जुस्तजू थी की कुछ तो नया करूँ मैं...
पर जिंदगी की आपाधापी में जाने वो कहाँ सो गयी.....
मिला जो तुमसे तो वो फिर से करवट लेने लगी है....
और फिर से एक बार मैने उसे जीने की ठानी है....
और इस बार मैं उसे सोने नही दूंगा.....
ये मेरा वादा है तुमसे मेरी "प्रेरणा".....

2 comments:

Ashish (Ashu) said...

भाव तो अच्छे हॆ...समा भी अच्छा बाधा हॆ पर अन्तिम पक्तियो में कुछ सूनापन लगा..

ज्योति सिंह said...

एक जुस्तजू थी की कुछ तो नया करूँ मैं...
पर जिंदगी की आपाधापी में जाने वो कहाँ सो गयी.....bilkul aesa hi hota hai jindagi ki bhag daud me kai ichchhaye peechhe rah jaati hai