Saturday, March 6, 2010

मज़बूरी-ए-दिल.....

दिल को कहीं और लगाने की हर जुगत लगाली.....
पर उसकी यादें है की जेहन से ही नही जाती.....
जनता हूँ की अब वोह किसी और की है....
पर इस दिल को इतनी सी बात नही समझ आती....

सुना था इश्क दीवाना कर देता है अच्छे भले इंसान को....
करके देखा तो यकीं भी हो गया,
खुद पे गुजरी है तो मजनूं की "मज़बूरी-ए-दिल" समझ आती है...

महफ़िल कैसे तन्हाई बनती है, आज समझ आया है.....
और यह भी की... कैसे तेरी यादें मेरी तनहाइयों को महफ़िल बनाती है...
कैसे किसी के जाने के बाद उसकी कमी शिद्दत से खलती है.....
तू थी तो जो बातें "बेवकूफी" लगती थी, अब वो ही बातें अक्सर याद आती है....

1 comment:

Apanatva said...

samay bada balvan hai .........
ab aage kee sudh lene me hee bhalai hai..........
shubhkamnae......