Tuesday, July 5, 2011

लूटेरी...

हर अलफ़ाज़ ऐसा था उनका..
की खोते चले गए हम उनकी बातों में...
जब होश आया तो जाना...
की अपना सब कुछ लूटा बेठे है...

हकीक़त फिर समझ आई हमें...
की दिल का सबसे अज़ीज़ हक गवां बेठे है...
उन्हें लूट के भी हमारा चैन, सुकून नहीं है....
और हम सब कुछ लूटा के भी जैसे, सारी कायनात पाए बेठे हैं....

उनकी उल्फत की आंच ने पिघला दी हर दिवार..
की हर राज-ए-दिल से रु-ब-रु  है
दीवानगी की हद का आलम ये था...
की हम मोम के दरवाजों पे ताले लगाए बेठे है...



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