Monday, July 4, 2011

बेरुखी उनकी...

ख़ामोशी भी होती थी दरमियाँ...
तो हल-ए-दिल वो जान जाते थे...
अब कह भी देते है अपने हालात...
तो भी नासमझ की तरह पेश आते है...


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