उसके तीखे तेवरों से ज्यादा उसके तल्ख़ अल्फाज़ चुभे ....
हम मोहोब्बत में आजमाइशों के कैसे कैसे दौर से गुजरे ....
लगादी तोहमत उसने मेरी वफ़ा , मेरे ज़मीर पर ...
उसकी दीवानगी में देखो कितने बेगैरत हो गए ....
देख के भी उसने मुझे कई दफा अनदेखा किया ....
अपनी गैरत को गिरवी रख, फिर भी रहे राहों में खड़े ....
हमे थी चाह बस सोहबत की उसकी ...
जाने कैसे उसे मेरी आँखों में हवस के डोरे दिखे ....
लुट के जार जार भी , न वफ़ा साबित कर सके ...
जाने किस मिटटी के वो ,जाने किस मिटटी के हम बने ....
No comments:
Post a Comment