वाद :- एक कमी थी ताज-महल में...हमने तेरी तस्वीर लगा दी....
आपने झूठा वादा करके....आज हमारी उम्र बढादी.....
तेरी गली में सजदा करके....हमने इबादतगाह बना दी॥
परिवाद :- आपके दिल में लगवानी थी जो...वो तस्वीर ताज-महल में लगवा दी....
आपने जिसे झूठा कहा, हमने उसपे जान गँवा दी....
मेरी गली को इबादतगाह बना के...खुदा से अदावत करा दी...
वाद :- ऐसे बिछड़े रात के मोड़ पर....आखिरी हमसफ़र रास्ता रह गया....
परिवाद :- चलते रहा ता-उम्र साथ मैं....सबने रास्ता ही कहा, हमसफ़र नही....
वाद :- और तो आशिकी में क्या मिलता...अपनी हस्ती भी छीन गयी मुझसे....
परिवाद :- फ़ना हो जाये कायनात जिसमें ये आशिकी का जलाल है...
किसी को तख्तो ताज खोने का गिला है, किसी को हस्ती का मलाल है....
वाद :- मैं जिसके आख का आंसू था...क़द्र न की उसने...बिखर गया हु अब तो धुल से उठा रहे है मुझे....
परिवाद :- भर भर आती थी ग़म से आँख तो भी न गिरने दिया, एक अरसे से मिली ख़ुशी तो तुझे न संभाल पाया...
ख़याल १ :- सोच कर आओ कु-ऐ-तमन्ना, जान-ऐ-मन जो यहाँ रह गया, रह गया...
उनकी आखों में कैसे छलकने लगा, मेरे होठों पे भी माजरा रह गया....
ख़याल 2 :- रकीब बन गयी दुनिया, मेरी आखों में जो अक्स उनका दिख गया....
मेरे जीते जी तो न समझ सके मुझे, फिर ता-उम्र मेरा जिक्र ही काम रह गया.....
ख़याल ३:- कागज की कश्ती थी पानी का किनारा था...खेलने की मस्ती थी...दिल भी आवारा था...
कहाँ से आ गए इस समझदारी के दलदल में, बचपन का वो वक़्त कितना प्यारा था....
ख्याल ४ :- लम्हा दर लम्हा उम्र गुजर जाती है...किनारे खो जाते है कश्तियाँ डूब जाती है....
हम जिनकी यादों के सहारे आज ताज जी रहे है, खुदा जाने उन्हें हमारी याद भी आती है??