Friday, November 5, 2010

तेरी आदतें... माशा-अल्लाह,,,,

हर लम्हा बस जुस्तजू है तेरी....
हर लम्हा आरज़ू है तेरी....
मुंदती नही पलके, सो भी जाऊं तो मेरी...
इन्तजार कराने  की पुरानी आदत जो है तेरी...

मुझे इश्क है तुझसे, यह सब लोग जानने लगे है...
पर तुझे भी वोह एहसास है के नही, खुद मैं भी नही जानता...
कभी लगता है के बेपनाह है, और कभी लगता है जेसे जर्रा भी नही....
अपने दिल की बात अपनी आँखों से भी छुपाने की आदत जो है तेरी....

तेरे गिले....

जानता हूँ कुछ गिले है तुझे....
पर मेरी हर खता के पीछे कुछ वजह थी...
कुछ वजहें मैंने बताई और तुने भी सही माना उन्हें...
और कुछ वजहें न मैं बता सका... न तुने ही जानने की कोशिश की....