Saturday, September 14, 2013

तेरी मौजूदगी

मुझे नहीं इल्म रंग-ओ-बू का बेशक। ….

बस सुकून मिलता है तेरी मौजूदगी से। …. 

न अल्फाज़ समझते

कहते है वो खुदको माशूक मेरी भरे ज़माने में। ….

न अल्फाज़ समझते है मेरे न ख़ामोशी ही  ….

उफ़ ये गर्मी। ….

कहीं दंगो की आंच से  …। 
कही बलात्कारियो दुष्काम  से। … 
कही राजनितिक समिकरन से  …. 
कही प्याज की जलन से  …. 
कही महंगाई की मार से  …. 
कही डोलेर और रुपये की तकरार से। … 
देश का वातावरण गरमाया है  …. 
शायद उसीका असर मौसम में भी आया है। … 


Tuesday, September 10, 2013

गुनाह-ए-अज़ीम

 गुनेह्गारों के माथे पे शिकन तक नहीं आती। ।
 गुनाह-ए-अज़ीम भी शान से कर जाते है। ….
मुश्किल हुआ मजलूमों को इन्साफ मिलना। …
बस दर बदर की ठोकरें खा के रह जाते है। ….