Friday, November 5, 2010

तेरी आदतें... माशा-अल्लाह,,,,

हर लम्हा बस जुस्तजू है तेरी....
हर लम्हा आरज़ू है तेरी....
मुंदती नही पलके, सो भी जाऊं तो मेरी...
इन्तजार कराने  की पुरानी आदत जो है तेरी...

मुझे इश्क है तुझसे, यह सब लोग जानने लगे है...
पर तुझे भी वोह एहसास है के नही, खुद मैं भी नही जानता...
कभी लगता है के बेपनाह है, और कभी लगता है जेसे जर्रा भी नही....
अपने दिल की बात अपनी आँखों से भी छुपाने की आदत जो है तेरी....

तेरे गिले....

जानता हूँ कुछ गिले है तुझे....
पर मेरी हर खता के पीछे कुछ वजह थी...
कुछ वजहें मैंने बताई और तुने भी सही माना उन्हें...
और कुछ वजहें न मैं बता सका... न तुने ही जानने की कोशिश की....

Monday, July 19, 2010

बदलती दुनिया...

नजर बदल जाती है, लोग बदल जाते है.....
नए मुसाफिर मिलते है, पुराने छुट जाते जाते है.....
यही दस्तूर है इस दुनिया का, जानते है हम.....
पर जाने क्यों हर बदलाव के साथ हम खुद को नही बदल पाते है....

Thursday, June 10, 2010

एक बार फिर अजनबी बन जाये...

सफ़र की शुरुआत में ही पता था की...
सफ़र का अंजाम क्या होना है....
फिर भी इतनी दूर तक साथ साथ चले आये....
अब जब थक गए है चलते चलते तो....
कह रहे, चलो एक बार फिर अजनबी बन जाये...

तुम्हे भूल जाना मुमकिन नही...

भूलने के लिए भुलाने की कोशिश करनी होती है....
हम तो तुम्हे हर पल का साथी बनाना चाहते है.....
धड़कने जैसे दिल का एहसास कराती है सीने में....
तुम वो एहसास हो जो मजा लाती है जीने में...

Friday, May 14, 2010

साथ साथ....

रखता हूँ सबसे छुपा के तुम्हे....
तुम दिल मे समाये हो...
बस गिला इतना ही है तुमसे...
पलके जुडी रहती है तो नजर आती हो...खोलते ही चली जाती हो..

हर शख्स में ढूंढ़ता हु तुझे...
हर अक्स में पाता हूँ तुझे....
याद नही आता इतनी शिद्दत से चाहना किसी को...
मेरे हर लम्हे में सोचने लगा हूँ तुझे.....

चल पलके बंद कर लेते हैं....
ख्वाब में मिलने के साथ....
हकीकत में तो क्या पता... ये दुनिया मिलने दे या न दे....
पर ख्वाबों में तो रह सकतें है साथ साथ....

Thursday, May 6, 2010

तुमसे मिलना...

खो सा गया हूँ, जबसे तुमसे मिला हूँ...
हर पल तुझे सोचता हु, जबसे तुमसे  मिला हूँ...
सोचता हूँ की एसा क्या हुआ, की में एसा हो गया हूँ....
पर सच ये भी है की जीने लगा हूँ जबसे तुमसे मिला हूँ....

तुम...

है रात गर चांदनी तो चाँद तुम हो...
जो हसरत बाकि दिल की वो हसरत तुम हो....
तनहा हो या महफ़िल में, ख्यालों में तुम हो....
लोग दीवाना कहने लगे है मुझे, मुझे जिसकी दीवानगी है वो तुम हो...

Sunday, May 2, 2010

खुमार.....

सुबह से शाम तक इन्तजार रहता है.....
यह दिल हर लम्हा बेकरार रहता है....
जनता हूँ तू मंजिल क्या हमराह भी नही मेरा....
फिर भी हर लम्हा तेरा ही खुमार रहता है......

Tuesday, April 27, 2010

दिल का हाल...

सोचा न था दिल की ऐसी भी हालत होगी....
किसी अनदेखी अनजानी से दिल को यूँ राहत  होगी...
हम तो समझते थे इन्हें बस किस्से कहानियों की बातें....
क्या खबर थी की एक दिन हमे भी ऐसी हरारत होगी....

Monday, April 26, 2010

वफ़ा...

एक साथ पलकें उठती थी दोनों की, कभी जागने को...
एक साथ पलकें झुकती थी दोनों की, कभी सोने को....
और आज ये आलम है की, उन्हें फुर्सत भी भी नही...
की तफ्तीश भी करले, हमारे जिंदा होने की.....

राहे उल्फत में ही क्यों लोग बिछड़ जातें है.....
जब वक़्त आता है कुछ करने का तो मुकर जातें है....

Sunday, April 18, 2010

ख्वाब...

ख्वाब में ही आजा के, हकीक़त में तो जाने कब मुलाक़ात होगी....


तेरी परछाइयों पे ही मर मिटा हूँ मैं तो....

क्या पता क्या आलम होगा दिल का......जिस दिन तू सच में मेरे साथ होगी...

Monday, April 12, 2010

jaaga soya.....

जग तो गया हूँ पर आँखें अभी भी मुंदी है....
एक हसीं ख्वाब से पलके अभी तक जुडी है.....
काश की मैं आँखें खोलूं और तू सामने हो....
अगर ऐसा न हो पाए तो सुबह ही न हो....

Sunday, April 4, 2010

जख्म

मत छेड़ो दिल के जख्मों को.....
जितना  कुरेदोगे, घाव गहरे होंगे.....
अब तो हालत यह है की...
कोई मरहम भी लगता है तो जख्म हरे हो जाते है....

दीवानगी

उनकी इन्तजार में कितनी सुबहें, शाम हो गई....
जिनके लिए ख़ास थी हमारी हर अदा, आम हो गई...
हम तो उनका जिक्र, खुदसे भी संभल के किया करते है...
और वो कहतें है मैं तेरी दीवानगी के चलते हर जगह बदनाम हो गई...

Saturday, March 6, 2010

मज़बूरी-ए-दिल.....

दिल को कहीं और लगाने की हर जुगत लगाली.....
पर उसकी यादें है की जेहन से ही नही जाती.....
जनता हूँ की अब वोह किसी और की है....
पर इस दिल को इतनी सी बात नही समझ आती....

सुना था इश्क दीवाना कर देता है अच्छे भले इंसान को....
करके देखा तो यकीं भी हो गया,
खुद पे गुजरी है तो मजनूं की "मज़बूरी-ए-दिल" समझ आती है...

महफ़िल कैसे तन्हाई बनती है, आज समझ आया है.....
और यह भी की... कैसे तेरी यादें मेरी तनहाइयों को महफ़िल बनाती है...
कैसे किसी के जाने के बाद उसकी कमी शिद्दत से खलती है.....
तू थी तो जो बातें "बेवकूफी" लगती थी, अब वो ही बातें अक्सर याद आती है....

Friday, February 19, 2010

ख़ामोशी...

वो कहतें रहे , प्यार लफ्जों का मोहताज नही होता.....

और हम इकरार उनके लबों से सुनने की हसरत में रहे....

पर वोह ख़ामोशी से जो बात कह गए....

हम ताउम्र भी वोह बात अपने लबों से न कह पाए....

जो एक जर्रा-ऐ-लम्हा में वो कर गए.....

हम तमाम कोशिशों के बावजूद भी न कर पाए.....


Thursday, February 18, 2010

आपकी दुआ..

ये तो दुआ है लोगों की , की साँसे आ जा रही है....

वरना उसने तो कोई कसर नहीं रखी है....

लोग कहते है ज़िंदा हूँ मैं....

पर हकीक़त तो यह है की जान तो उनमें ही अटक रखी है...

Friday, February 12, 2010

जुस्तजू.....

एक जुस्तजू थी की कुछ तो नया करूँ मैं...
पर जिंदगी की आपाधापी में जाने वो कहाँ सो गयी.....
मिला जो तुमसे तो वो फिर से करवट लेने लगी है....
और फिर से एक बार मैने उसे जीने की ठानी है....
और इस बार मैं उसे सोने नही दूंगा.....
ये मेरा वादा है तुमसे मेरी "प्रेरणा".....

Friday, January 8, 2010

वाद- परिवाद....

वाद :- एक कमी थी ताज-महल में...हमने तेरी तस्वीर लगा दी....

आपने झूठा वादा करके....आज हमारी उम्र बढादी.....

तेरी गली में सजदा करके....हमने इबादतगाह बना दी॥

परिवाद :- आपके दिल में लगवानी थी जो...वो तस्वीर ताज-महल में लगवा दी....

आपने जिसे झूठा कहा, हमने उसपे जान गँवा दी....

मेरी गली को इबादतगाह बना के...खुदा से अदावत करा दी...

वाद :- ऐसे बिछड़े रात के मोड़ पर....आखिरी हमसफ़र रास्ता रह गया....

परिवाद :- चलते रहा ता-उम्र साथ मैं....सबने रास्ता ही कहा, हमसफ़र नही....

वाद :- और तो आशिकी में क्या मिलता...अपनी हस्ती भी छीन गयी मुझसे....

परिवाद :- फ़ना हो जाये कायनात जिसमें ये आशिकी का जलाल है...

किसी को तख्तो ताज खोने का गिला है, किसी को हस्ती का मलाल है....

वाद :- मैं जिसके आख का आंसू था...क़द्र न की उसने...बिखर गया हु अब तो धुल से उठा रहे है मुझे....

परिवाद :- भर भर आती थी ग़म से आँख तो भी न गिरने दिया, एक अरसे से मिली ख़ुशी तो तुझे न संभाल पाया...

ख़याल १ :- सोच कर आओ कु-ऐ-तमन्ना, जान-ऐ-मन जो यहाँ रह गया, रह गया...

उनकी आखों में कैसे छलकने लगा, मेरे होठों पे भी माजरा रह गया....

ख़याल 2 :- रकीब बन गयी दुनिया, मेरी आखों में जो अक्स उनका दिख गया....

मेरे जीते जी तो न समझ सके मुझे, फिर ता-उम्र मेरा जिक्र ही काम रह गया.....

ख़याल ३:- कागज की कश्ती थी पानी का किनारा था...खेलने की मस्ती थी...दिल भी आवारा था...

कहाँ से आ गए इस समझदारी के दलदल में, बचपन का वो वक़्त कितना प्यारा था....

ख्याल ४ :- लम्हा दर लम्हा उम्र गुजर जाती है...किनारे खो जाते है कश्तियाँ डूब जाती है....

हम जिनकी यादों के सहारे आज ताज जी रहे है, खुदा जाने उन्हें हमारी याद भी आती है??