सोचता हूँ की न सोचूं तेरे बारे में...
पर हर सोच तुझ पे ही आके रुक जाती है...
जानता हूँ की अब तेरा कोई वास्ता नही मेरी सोच से...
फ़िर भी मेरी तस्सवुर से तू नही जाती है...
प्यार करो लेकिन एक हद में रहकर...
हर किसी से मुझे ये ताकीद अक्सर मिल जाती है .....
पर दीवानगी किस हद पे जाके जूनून बन जाती है ....
मुझ कमसमझ को ये भी तो नही समझ आती है ....
गिला था कभी तुम्हे...
की आपको तो हमारी याद भी नही आती है.....
और आज आपकी हसरत है की हम आपको भूल जायें...
जबकि ख़ुद किसी बहाने से जेहन में चली आती हैं...
अरमानों को कुचल के अपने...
किसी की खुशी के खातिर मुस्कुराना...
दिल में लेके दर्द के तराने...पर महफ़िल में खुशनुमा गीत गाना...
शायद यही वो हालात है जिंदगी के...जो बेबसी कहलाती है....