Saturday, July 12, 2008

मुफलिसी...

तेरे सितम से गमगीन अब भी मेरी शामें है...

ये तो तेरी यादें है, जो मेरी सांसों की डोर थामें है...

तेरी तस्वीर को भी कोई नजर भर के देखे तो कहाँ गवारा था मुझे...

ये तो मेरी मुफलिसी है, जो आज कोई और तेरा हाथ थामें है...

Saturday, July 5, 2008

आज फ़िर...

यूँ मिले तुम पहले से आज....

की दिल का हर अरमान फ़िर से सर उठाने लगा.....

वो ख्वाब भी करवट लेने लगे हैं....

जिन ख्वाबों को मैं ख़ुद सुलाने था चला...

एक अरसे से आज मुस्कुराने को दिल चाहा....

एक अरसे से आज कुछ गुनगुनाने को दिल चाहा.....

मुद्दत बाद लगा की जिंदगी अभी भी बाकी है.....

एक अरसे बाद हमने खुदा से कुछ अपने लिए मांगा है....

अश्क तो पहले भी थे पलकों पर....

पर उन अश्कों में दिल डूबा डूबा सा रहता था...

चेहरा तो आज भी भीगा है अश्कों से...

पर आज एक अरसे बाद आईने ने मुझे फ़िर से हसीं बताया है...

Friday, July 4, 2008

तेरा जिक्र....

आज जब तेरा जिक्र चला....

तो तुझसे जुड़ी हर बात याद आने लगी...

दिल की अँधेरी हो चुकी गलियों मे जैसे...

तू फ़िर से शमा जलने लगी...

रूठ चुकी थी जो बहार हमसे....

फ़िर यादों के गुलशन महकाने लगी...

जिन बातों को एक अरसे से लगा था मैं भुलाने की जुगत में...

एक एक करके चलचित्र सी चली जाने लगी....

याद आ गया मेरा वो...

एकतरफा तुझसे प्यार...

मेरी प्यार भरी मिन्नत तुझसे ...

और तेरी वो दुत्कार...

मेरा राहों मे इन्तजार करना...

और मुझे देखकर तेरा रास्ता बदल देना...

पर जाने क्यूँ मुझे अपने प्यार पे इतना था भरोसा...

की हर बार लगता की ये भी है तेरी कोई अदा...

और फ़िर एक दिन मेरे सब सपने रुसवा हुए...

जब आप अपनी मंजिल की तरफ़ चल दिए...

जनता हूँ अब इन बातों को भूलने में ही सबका भला है...

पर इस दिल को आज भी खुदसे गिला है....

Tuesday, July 1, 2008

वक्त....

आज उसी मोड़ पे उनसे मुलाक़ात हो गई...
जिस मोड़ पे बरसों तेरी मैंने रह ताकि थी....
ये वक्त ही ही तो है ....जो.....
आज मैं तुझे नही दे सकता, और जो कल तू मुझे न दे सकी थी....

तेरा साथ पाना तो मेरी दिली ख्वाहिश थी....
पर ये बात तुझे उस वक्त नागवार गुजरी थी...
और आज जब मैं चाह के भी तुम्हारा साथ नही दे सकता...
तुम सामने खड़ी हो और कह रही हो की वो मेरी मज़बूरी थी....

क्यों हम वक्त रहते कोई बात समझ नहीं पाते है...
और मौका हाथ से जाने के बाद अक्सर उसे वापस चाहते हैं...

जज्बात....

लम्हा-ऐ-रुखसती तेरी दिल तो मेरा भी जार जार रोया...


बस तेरी तरह मैं अपनी पलके न भिगो सका...


शायद यही वजह है की तुमने


मुझे संगदिल मान लिया.....



था तो बहुत कुछ बयां करने को रस्म-ऐ-मोहोब्बत में...


पर अपने जज्बात मैं अल्फाजों की शकल में न ढाल पाया...


शायद यही वजह है की तुमने समझा...

मुझे इश्क से कोई इत्तेफाक नहीं है....

पर हर दर्द रोके ही तो बयां नही होता....

हर जज्बात कहके ही तो बयां नहीं होता....

रस्म-ऐ-मोहोब्बत तो खामोश रहके के भी निभाई जाती है...

पर सच ये भी है.... कुछ बातें कहके ही बतायी जाती है....