Saturday, July 12, 2008

मुफलिसी...

तेरे सितम से गमगीन अब भी मेरी शामें है...

ये तो तेरी यादें है, जो मेरी सांसों की डोर थामें है...

तेरी तस्वीर को भी कोई नजर भर के देखे तो कहाँ गवारा था मुझे...

ये तो मेरी मुफलिसी है, जो आज कोई और तेरा हाथ थामें है...

2 comments:

Anonymous said...

तेरे सितम से गमगीन अब भी मेरी शामें है...
ये तो तेरी यादें है, जो मेरी सांसों की डोर थामें
bhut gahari paktiya. bhavuk. ati uttam

seema gupta said...

wah good expression