Friday, December 28, 2012

अपनी मुसुकुराहट से जीने का सबब दे दे ...

दुआओं से मिली ज़िन्दगी को हादसों की सौगात न बुला ...
कीमत इसकी उनसे पूछ जो बेमौत मारे जाते है ..

रहम दिल खुदा ने तुझे ये ज़िन्दगी अता की ...
तू अपनी मुसुकुराहट से जीने का सबब दे दे ...

हादसे भुलाके आगे बढ़ना ही ज़िन्दगी है ...

हादसे भुलाके आगे बढ़ना ही ज़िन्दगी है ...

क्यूंकि हादसों से ज़िन्दगी रुका नहीं करती ....

मत भूल ...

मुस्कुराना बस खुदके लिए अकेले में ... काफी नहीं ...

मत भूल की तुझे देखके कई लोग जिया करते है ....

तेरी मुस्कान

किस तरह रोती है तू ... ये इल्म है मुझे ...
इसीलिए तेरी मुस्कान का खास ख्याल रखते है ....

मेरे अश्क ... तेरी तवज्जो

मेरे अश्क बस तेरी तवज्जो के मुन्तजिर थे ...

इसीलिए बस तुझे दिखे भरी बारिशों के बावजूद ....

मेरी चाहत

जुडी हो रूहें तो अल्फाज बस बहाना है ...

मेरी चाहत क्या है ये मुझसे बेहतर तुझे पता है ...

तेरी सोहबत

समझ तू कैसा भी बद दिमाग या दिलबर अपना ...

मुझे तो बस तेरी सोहबत की हसरत है ....

पर्दानाशिनी से तौबा करलो ...

तेरे दीदार से बड़ी राहत न कल थी न कल होगी ...

गुजारिश है पर्दानाशिनी से तौबा करलो ...

मेरी मुस्कान

देते इलज़ाम कैसे उसे ...
जिससे जीने का सबब है मिला ...
मेरी मुस्कान को अगर वो ...
इलज़ाम समझे तो क्या किया जाये ...

यकीं है खुदपे और अपने यार पर

मेरी उम्मीदों के चिराग किसी तेल के मोहताज़ नहीं ...

मुझे यकीं है खुदपे और अपने यार पर बहुत ...

ढूढने की बजाये महसूस कर ....

नज़र और एहसासों की बात है दोस्त ...

कहीं ढूढने की बजाये महसूस कर ....

उसे देख के मुस्कुराना....

मैं बर्बाद हूँ उसकी खातिर ...
उसको ये यकीं नहीं है ...
उसे देख के मुस्कुराने की ...
आदत आज भी कायम है .... ना 

मौत के खौफ से जीना तो न छोड़ ....

मौत को भूलजा ... ये नसीहत नहीं मेरी ....

पर मौत के खौफ से जीना तो न छोड़ ....

खुदगर्ज होके जीना

खुदगर्ज होके जीना आशिकों का मकसद नहीं ....

दर्द को जज्ब करके जीना आशिकों की पहचान है ....

तू महसूस तो कर

हम तेरे है ... क्या अभी भी वादे की जरूरत है ....

तू महसूस तो कर मैं तेरे ही साथ हूँ ....

ऐतबार और इंतजार

साथ है मोह्होब्बत अपने हर मुरीद के ...
.
बस जरुरत है ऐतबार और इंतजार की इसमें ....

मोह्होब्बत भीख नहीं ..

उसने कहा - मोह्होब्बत भीख है शायद ...
                   बड़ी मुश्किल से मिलती है ...

मैंने कहा - मोह्होब्बत भीख तो हरगिज़ नहीं ...
                 मांगने वाले को कभी नहीं मिलती .....

तेरे चश्म-ए-तर

तुझे सुकून मिलता है तो तेरे चश्म-ए-तर  में भी रह लूँगा
.
मुझे खोने के खौफ से ही सही, तू रोएगी तो नहीं ....

क़ुबूल है ये भी ....

खलता है उसका यूँ मुझसे बेरुखी करना ....
.
पर उसकी ख़ुशी है इसमें ही तो, क़ुबूल है ये भी ....

तकदीर की बात मोहोब्बत ....

दुआओं में हर पल माँगा तो भी न मिली मुझे ...
हो गई उसकी यूँ ही जिसने पलट के तक न देखा था उसे ...
यूँ कहूँ तकदीरों से मिलती है मोह्होबात तो हरगिज गलत न होगा ...
मैंने अक्सर देखा है इसे अपने निहायत ही बेकदार्दानों को मिलते हुए ....


Thursday, December 27, 2012

कल का हमदर्द

सहराओं में प्यासा रहना जायज है ...
दरिया भी मेरी प्यास बुझाता नहीं ...
वक़्त वक़्त की बात है मेरे दोस्त ...
कल का हमदर्द आज दर्द बंटाता नहीं ...

हुनरमंद माली की जरूरत है ....

उसने कहा - फिर नहीं बसा करते वो दिल
                   जो एक बार उजड जाते है जज्बात के तूफ़ान से ....

मैंने कहा -  फिर से बहाल हो सकता है दिल का हर जज्बात ...
                  बस एक अदद हुनरमंद माली की जरूरत है ....

एक पल को भी...

उसने कहा - याद आते हम भी कभी तुम्हे ...
                  हम भी काश की वाकये होते ....

मैंने कहा - तुम्हे शिकायत है की हम तुम्हे याद नहीं करते ....
                 दिल को पूछ मेरे गर एक पल को भी भूला हूँ  तुझे ....

वजह

उसने कहा - शिकवे तो बहुत है मगर शिकायत कर नहीं सकते ...
                   होठों को इज़ाज़त नहीं है तेरे खिलाफ बोलने की ....

मैंने कहा - बस  यही वजह है फसलों की दरमियाँ हमारे ....
                 तुम दिल की बात लबों पे नहीं लाते हो .....

इबादत का शउर

दिल रख दिया तेरे क़दमों में मैंने ....
इबादत का इतना ही शउर है मुझे ....

Tuesday, December 25, 2012

अब वो प्यार थोड़े ही है ....

खुदगर्जी के बने है रिश्ते जो हम निभा रहे है ...
तुझको मुझसे या मुझको तुझसे अब वो प्यार थोड़े ही है ....

वो दौर और ही था जब समझ जाते थे बिन कहे हाल-ए-दिल ...
न वोह दौर है अब न वो जज्बात रहे अब वो इश्क का खुमार थोड़े ही है ...

गुजर जाते थे पहरों एक दूजे की बाजुओं में यूँ ही बेसुध ....
न वो समां न खाली वक़्त और एक दूजे पे वो इख़्तियार थोड़े ही है ...

कहने को तो एक दुसरे के हो गए हम सारे फासले मिटा के ...
पहले की सी शोखी बेबाकी भरे शिकवों का गुबार अब थोड़े ही है ....

Wednesday, December 19, 2012

मजबूर दिल के हाथों हैं

मजबूर दिल के हाथों हैं
जो जान के भी अनजान बनते है ...
जिसने सिरे से खारिज करदी मेरी मोह्होब्बत ..
हम पल पल में बस उसीका इंतज़ार करते हैं ....

Tuesday, December 18, 2012

देखके तेरी सूरत

देखके तेरी सूरत ही धड़कने बढ़ जाती है ...
.
जज्बात तो अपने कबसे जज्ब किये है मैंने ....

आधा अधुरा मैं ...

मिलके भी तुझसे पूरा न हो सका मैं ...
.
बदकिस्मती थी मेरी या रजा तेरी ....


वक़्त

 जिसे भूलने की शिद्दत से कर रहा हूँ कोशिशें ...
.
वक़्त किसी न किसी बहाने रोज उससे मिला देता है ...

Monday, December 17, 2012

रोज मुलाक़ात नहीं हो पाती ....

न कोई खता हुई है तुमसे ...
और न ही मेरे करीब कोई और हुआ ...
बस वक़्त का तकाजा है की ...
रोज मुलाक़ात नहीं हो पाती ....

दिल को अज़ीज़ है

है सितमगर वो ... ये मालूम है मुझे ...
पर आज भी उनकी हर अदा , दिल को अज़ीज़ है ....

मेरे वजूद की अहमियत

किया क़ुबूल तूने मेरे वजूद की अहमियत को ...
यही काफी है ये एक ज़िन्दगी गुजारने को ....

उसकी बेरुखी

किसी हथियार की जरुरत नहीं मुझे मारने को ...
मुझे तो तबाह उसकी बेरुखी ही कर देगी ....

उसकी ख़ामोशी

चुप रहके भी देखा मैंने उसकी ख़ामोशी के आगे ...
पर कोई सदा न दी उसने , न दिल से न निगाहों से ....

जबान का काम तो जबान ही करती है ...
नहीं समझता मैं आँखों की ये बोलियाँ .....

खेलना दिलों से

खेलना दिलों जैसे फितरत है कुछ लोगों की ...
जब खुद के दिल पे आती है तो इंसानियत का हवाला देते है ....

टूटे दिल के अफ़साने

टूटे दिल के अफ़साने अक्सर मजे लेके सुनते है लोग ...
पर कही दिल जुड़ जाते है तो इनकी नींद हराम हो जाती है ....

दिल तोड़ने का शगल

बेइरादा मिली नज़रें ही चाहत का फ़साना बनी ...
बेइरादा भी उन्हें दिल तोड़ने का शगल है ...

दिल के टूटने का दर्द

दिल के टूटने का दर्द तब और भी शिद्दत से महसूस होता है ....
जब बदनसीबी से दिल तोड़ने वाले से दिल शिद्दत से लगा होता है ....

दोहरा जख्म

दोहरा जख्म देती है जो चोट अपनों से मिलती है ....
एक घाव दिल पे लगता है और एक जिस्म पे ....

तेरी मजबूरी

सच है की मिल न पाना रोज तुमसे कसक है देता  ...
पर ऐसा भी नहीं है की मैं तेरी मजबूरी नहीं समझता ...

दोस्ती

लगाके तोहमत दोस्त पे ...
अपनी बेगुनाही क्या जताना ...
जिसे पता नहीं दोस्ती के मायने ...
उसे क्या दोस्ती याद दिलाना ...

वो ताउम्र ...रहा अजनबी

साथ रहा मेरे वो ताउम्र ... पर अजनबी की तरह ...
न अपने दिल की कोई बात की ... और न ही जानी मेरी आरज़ू ...

Saturday, December 15, 2012

चुप रहके देते है सजा ....

रहते है सामने ... पर अजनबी की तरह ...
कहते है गिला नहीं कोई ... पर चुप रहके देते है सजा ....

खलती है ख़ामोशी

खलती है ख़ामोशी उनकी ...
ये बखूबी जानते है वो ....
फिर भी बात या बे-बात पे ...
ख़ामोशी अख्तियार कर लेते है ....

कैसे कैसे लोग मंच पे ...

जले पे नमक छिड़कने वाले ....
अधजले को पूरा जलने वाले ....है अब मंच पे ...

लूट जिनका पेशा कत्ल छोटी सी बात ...
वतन की आबरू बेच के खाने वाले ... है अब मंच पे ...

देके पहले तो ज़ख्म खुद ही ...
मरहम लगाने के बहाने खून बहाने वाले ... है अब मंच पे ...

तबाही के मंज़रों पे ठहाके लगाने वाले ...
न मरते के बेमौत मारके रोने का ढोंग रचाने वाले ... है अब मंच पे ....

जिसे सोच के ही हमे घिन्न आये ....
वो गुनाह - ए- अज़ीम हस के कर गुजरने वाले ... है अब मंच पे .....

सह सह के गुज़र गई उम्र हमारी ...
अब मौका है मुल्क की आवाम इन्हें उतार के हम चढ़ जाते है मंच पे ....


Thursday, December 6, 2012

मेरा उसूल

शक्शियत बदल के प्यार करना ...
मेरा उसूल नहीं है दोस्त ....
और किसी की खातिर खुद को बदलना ...
मुझे क़ुबूल नहीं है दोस्त ...

वजूद का रुतबा

इस कदर उसके वजूद का रुतबा है मेरे वजूद पे ....
.
की हर शक्श यहाँ तक की खुद मुझमे भी उसे ही पाता हूँ ....

Saturday, December 1, 2012

तेरी हर एक अदा ..

मेरे दिल को भाती है तेरी हर एक अदा ....
क़त्ल करने की भी और इलज़ाम देने की भी ...