Sunday, April 13, 2008

गिला...

उन्हें गिला है , क्यों सबको ख़बर है मेरे प्यार की...
पर ये खता मेरी नही , शायद लोग आंखों मे देख लेते है सूरत आपकी...
जो ख़ुद ही बेखबर हो , वो क्या किसी को ख़बर करेगा...
हाँ शायद ये चुगलिखोर , खामोशी हो आपकी.....

यूं ही इत्तेफाकन हुई कितनी मुलाकातें याद रहती है...
यूं ही किसी मोड़ पे मिली कितनी सूरतें याद रहती है...
कहते है की आशिकों को खुदा मिलवाता है...
पर हमें तो ये जादूगरी लगती है आपकी ........

नजदीकियां....

आप पास रहते हो तो हर बात अच्छी लगती है.....
आपसे दुरी जाने क्यों इतना खलती है....
इतने दिन क्यों आपसे दूर रखा.....
बस खुदा से यही शिकायत रहती है....

नजदीकियां आपसे इतनी हो जायेगी, सोचा न था...
हमें चाहत इतना सताएगी, सोचा न था....
रहते हो दूर तो मिलने की बेताबी रहती है....
और पास रहते हो तो जुबान भी नही खुलती है..

Friday, April 11, 2008

उसका आना.....

खत्म होती सांसों पे भी उसीका इख्तियार है...
भले ही वो सितमगर है,फिर भी उसीसे प्यार है...
चाहे पागलपन कहलो,या कहलो दीवानगी मेरी....
केसे भुलादुं उसको , आखीर मेरा पहला प्यार है....

उसका आज भी ख्वाबों में आना सुकून देता है....

उसका आज भी नखरे दिखाना सुकून देता है....

महक उसकी अपनी सांसो से मिटाऊ केसे....

मेरी हर धड़कन में आज भी उसीका प्यार है....