Tuesday, September 30, 2008

वाकये....

राहे उल्फत में मोड़ कुछ ऐसे भी आते हैं,

जिनके बिना एक कदम भी चलना हो मुश्किल

वोही हमे पीछे छोड़ जाते हैं....

पर जिंदगी रूकती नही ऐसे हादसों से ....

बस कुछ देर धीमे और फ़िर बस ....

बिछड़ने वालों के नाम रह जाते हैं....

ऐसा अक्सर और हर एक के साथ होता है....

फ़िर भी कुछ वाकये अक्सर रुला जाते है....

Sunday, September 28, 2008

बीते दिन....

आज पुराने दरख्त ने आवाज़ दी है...

जिसकी छावों में हर दोपहर गुजरा करती थी...

उन शाखाओं ने आवाज़ दी है...

जिनसे बचपन में गिल्ली-डंडा बना करती थी...

गाँव की वो नदी फ़िर बुला रही है मुझे...

जिसमे घंटो अठखेलियाँ करते थे हम...

उन गलियों ने फ़िर से पुकारा है....

जिनमे यु ही बेमकसद घुमा करते थे हम....

आज वो दरख्त अकेला है...

क्यूंकि अब बुड्ढा गया है वो...

वो शाखों पे कोई नही झूलता....

क्यूंकि जर्जर हो गई है वो....

वो नदी भी कुछ उदास सी है....

क्यूंकि अब वो उफान नही रहा उसमे...

भीड़ भाद में भी वो गलियां सुनी सी है...

क्यूंकि किसी के पास रुकने की फुर्सत नही है....

आज फिरसे उन बीते दिनों को जीने की चाह है.....

जिन दिनों के बीत जाने की तब हम दुआ करते थे....

आज फ़िर से वोही बचपन के दिन चाहता है मन...

जिन दिनों में जल्द से जल्द बड़े होने की ख्वाहिश रखते थे....

Friday, September 26, 2008

जुदा है हकीक़त...

एक उम्र निकल गई तुमसे रिश्ता बनाने में,

और एक पल में यूँ जैसे सब कुछ बिखर सा गया...

हम जीते रहे इस मुगालते में की तुम्हे जानते है हम,

पर हकीक़त में तो बस अपनी पहचान भर है....

एक सहारे की तलाश में दर दर भटकते रहे हम....

मिले जब तुमसे तो लगा की वोह तलाश पुरी हुई....

लगने लगा की इश्क हमपे भी मेहरबान हो रहा है अब...

पर हकीक़त में हम वोह खुशनसीब नहीं....

जाने क्यों लगता है की दूर रहके खुश तो तू भी नही...

पर बेरुखी तेरी से भी तेरी मैं अनजान नहीं...

दुनिया की नज़र खटकती है हमें मुस्कुराते देख कर...

पर हकीक़त में न सुकून से हम है, और सुकून से तू भी नहीं....