Sunday, May 4, 2008

कशमकश....

कुछ तो कशिश है तुझमे,
की हम चाह के भी रूठ नही पाते
कोई तो बात है तुझमे,
की हम चाह के भी नही भूल पाते,
जानते है की अब वो मोहब्बत के दिन नही रहे,
फ़िर भी जाने क्यों तूझे ख्वाबों से नही निकाल पाते....

जब से दूर हुए हो तुम,
हसरतें और बढ़ गई हैं,
मेरी बेकरार आंखों की,
अब नींद बिल्कुल उड़ गई है,
अब तेरी यादें मेरी तन्हाई का इन्तजार नही करती,
भरी महफिलों में भी अब वो मेरे साथ होती है...

जर्रा जर्रा मेरा आजकल
ये सवाल किया करता है,
दो चाहने वालों का ये,
क्यों अंजाम हुआ करता है,
गर दिल में चाहत है तो क्यों लबों पे नही आ पाती है,
और अक्सर किसी के दूर होने पर ही क्यों उसकी कीमत समझ आती है....

शिकवा....

मसरूफ हो यूं दुनियादारी में,
की तन्हा हमें कर दिया,
कहीं ये इसलिए तो नहीं,
की हमने ख़ुद को दुनिया में हट के कह दिया....

या शायद तुमने उस बात को,
ज्यादा ही संजीदगी से ले लिया,
की जब मैने कहा था तुमसे,
की जीने के लिए तुम्हारी यादें ही बहुत है,
या ये उस बात की सज़ा है,
की कुछ ज्यादा ही प्यार कर लिया,