Friday, September 26, 2008

जुदा है हकीक़त...

एक उम्र निकल गई तुमसे रिश्ता बनाने में,

और एक पल में यूँ जैसे सब कुछ बिखर सा गया...

हम जीते रहे इस मुगालते में की तुम्हे जानते है हम,

पर हकीक़त में तो बस अपनी पहचान भर है....

एक सहारे की तलाश में दर दर भटकते रहे हम....

मिले जब तुमसे तो लगा की वोह तलाश पुरी हुई....

लगने लगा की इश्क हमपे भी मेहरबान हो रहा है अब...

पर हकीक़त में हम वोह खुशनसीब नहीं....

जाने क्यों लगता है की दूर रहके खुश तो तू भी नही...

पर बेरुखी तेरी से भी तेरी मैं अनजान नहीं...

दुनिया की नज़र खटकती है हमें मुस्कुराते देख कर...

पर हकीक़त में न सुकून से हम है, और सुकून से तू भी नहीं....

2 comments:

मोहन वशिष्‍ठ said...

बहुत भावुक हो दोस्‍त तभी इतना अच्‍छा लिख लेते हो बहुत अच्‍छा लिखा आपने बधाई हो जारी रखो

seema gupta said...

एक उम्र निकल गई तुमसे रिश्ता बनाने में,
और एक पल में यूँ जैसे सब कुछ बिखर सा गया...
" beautiful creation, liked it"

Regards