Saturday, May 16, 2009

गुफ्तगू....

अरमानों ने तो अपने परवाज़ फैलाये....
पर हम ही अपनी मुट्ठी न खोल पाए.....
पैमानों ने तो भरसक कोशिश की छलक जाने की....
पर हम ही अपने लब न खोल पाए....

बहुत कोशिश की तुने अपने जज्बात जताने की....
पर हम ही नासमझ थे..जो न समझ पाए...
हर बात को तेरे अल्फाजों में सुनने की आरजू में उम्र निकाल दी....
पर प्यार में खामोशी भी गुफ्तगू होती है...न समझ पाए....

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