वो आजमाते रहे मेरे इश्क को ....
और हम आजमाते रहे किस्मत को ...
वो जताते रहे मज़बूरी अपनी .....
लब खामोश थे हम समझ न पाए ....
मेरी शिद्दत को खुदगर्जी समझा ....
बस यही खता ताजिंदगी उसने की ....
कर सकते गर तो कर देते सब नाम तेरे ....
पर सिवा तेरे दिल के मेरी जायदाद क्या थी ...
अपने सपने बेच के सजाई थी मेने ये इश्क की दुनिया ...
अब तू ही नहीं तो क्या सपने और क्या दुनिया ....
और हम आजमाते रहे किस्मत को ...
वो जताते रहे मज़बूरी अपनी .....
लब खामोश थे हम समझ न पाए ....
मेरी शिद्दत को खुदगर्जी समझा ....
बस यही खता ताजिंदगी उसने की ....
कर सकते गर तो कर देते सब नाम तेरे ....
पर सिवा तेरे दिल के मेरी जायदाद क्या थी ...
अपने सपने बेच के सजाई थी मेने ये इश्क की दुनिया ...
अब तू ही नहीं तो क्या सपने और क्या दुनिया ....
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