Thursday, September 13, 2012

मंजिल

आवारा क़दमों की कैसी मंजिल ....
चले जाते है जहाँ राहें ले जाती है ....
थक के जिस जगह शाम कर ली ....
वो ही उस दिन की मंजिल बन जाती है ...

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