तलब है जहाँ भर को समेत लूं खुद में ....
पर जरा भी कीमत अता करने में गुरेज है ...
रफ्ता रफ्ता बंद कर लिए है सब सूराख जेहन के ....
कोई जगह नहीं इसमें नयी सोच आने की .....
पर जरा भी कीमत अता करने में गुरेज है ...
रफ्ता रफ्ता बंद कर लिए है सब सूराख जेहन के ....
कोई जगह नहीं इसमें नयी सोच आने की .....
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